कान्स 2025 खत्म हो गया, लेकिन इस बार की कहानी कुछ अलग ही रही। जहां एक तरफ इराक ने पहली बार इतिहास रचते हुए अपना पहला बड़ा इंटरनेशनल अवॉर्ड जीता, वहीं भारत की बहुचर्चित फिल्म ‘होमबाउंड’ उम्मीदों पर खरी नहीं उतर पाई।
इराक ने रचा इतिहास, दुनिया ने दी तालियां
Cannes के मंच पर इस साल एक नया चेहरा उभरा – इराक। उनकी फिल्म “Whispers of Dust” को बेस्ट डेब्यू फीचर फिल्म का अवॉर्ड मिला। ये इराक के लिए गर्व की बात है क्योंकि पहली बार उनके किसी फिल्ममेकर को इतना बड़ा इंटरनेशनल मंच मिला है।
फिल्म की कहानी युद्ध से जूझते एक आम आदमी की ज़िंदगी पर आधारित थी, जिसने जजों और दर्शकों का दिल छू लिया। पूरी दुनिया में इस फिल्म की चर्चा हो रही है।
'होमबाउंड' से थी बड़ी उम्मीद, लेकिन...
भारत की ओर से इस बार 'होमबाउंड' को भेजा गया था, जिसे लेकर काफी हाइप थी। सोशल मीडिया से लेकर फिल्म समीक्षकों तक, सबको लगा था कि ये फिल्म कोई बड़ा कमाल करेगी।
लेकिन अफसोस, न तो फिल्म ने जूरी को खास इम्प्रेस किया, और न ही दर्शकों पर वो असर छोड़ पाई जिसकी उम्मीद थी। स्क्रिप्ट धीमी थी, और कहानी में वो पकड़ नहीं थी जो इंटरनेशनल लेवल पर ज़रूरी होती है।
क्या चूक गया भारत इस बार?
फिल्म क्रिटिक्स का कहना है कि 'होमबाउंड' का टॉपिक बहुत अच्छा था – प्रवासी भारतीयों की भावनात्मक वापसी – लेकिन इसे जिस तरह पेश किया गया, उसमें गहराई की कमी रह गई। वहीं इराक की फिल्म ने सच्चाई, दर्द और जज़्बातों को बहुत ही सादा और असरदार तरीके से दिखाया।
सोशल मीडिया पर मिली-जुली प्रतिक्रिया
जहां कुछ लोग 'होमबाउंड' को सपोर्ट कर रहे हैं और इसे भारतीय सिनेमा की नई कोशिश मान रहे हैं, वहीं बहुत से लोग निराश भी हैं कि Cannes जैसे बड़े मंच पर भारत खाली हाथ लौट आया।
निष्कर्ष
Cannes Film Festival 2025 इराक के लिए यादगार बन गया और भारत के लिए एक सबक छोड़ गया। शायद अब वक्त आ गया है कि भारतीय फिल्ममेकर्स इंटरनेशनल ऑडियंस के टेस्ट को समझें और कहानियों को एक नए तरीके से पेश करें।
‘होमबाउंड’ भले ही अवॉर्ड न जीत पाई हो, लेकिन उसने ये तो साबित कर ही दिया कि भारत अब नए विषयों पर बोलने को तैयार है। उम्मीद है अगली बार हम फिर से गर्व करने लायक कुछ लेकर आएंगे।